सरकारी मितव्ययिता, राजसी ठाट और शशि थरूर का ‘कैटल क्लास’

पिछले कुछ दिनों से मैं समाचार माध्यमों के द्वारा प्रसारित एक खबर पर गौर कर रहा हूं । खबर है कि केंद्र सरकार के वर्तमान ‘माननीय’ विदेश राज्यमंत्री शशि थरूर ने हवाई जहाजों के ‘इकॉनमी क्लास’ को ‘कैटल क्लास’ कहकर अपनी ही सरकार के ‘मितव्ययिता अभियान’ की खिल्ली उड़ाई है । (क्लिक करें एक तथा दो) देश में लगातार अबाध गति से बढ़ रही रोजमर्रा की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए देश के वित्तमंत्री और प्रधानमंत्री ने अपने मंत्रालयों को सलाह दी है कि वे अपने खर्चों को घटायें । इस दिशा में एक कदम हवाई यात्राएं कम करने और आवश्यक होने पर ‘इक्जक्यूटिव क्लास’ के बदले ‘इकॉनमी क्लास’ में यात्रा करने की सलाह दी गयी है । श्रीमान् थरूर को यह सलाह रास नहीं आई और बोल पड़े कि वे ‘कैटल क्लास’ (‘इकॉनमी क्लास’) में यात्रा नहीं कर सकते ।

हवाई यात्रा के इकॉनमी क्लास को कैटल क्लास कहने पर श्री थरूर की खूब आलोचना हुई है । कैटल क्लास यानी गाय-भैंसों के लायक दर्जा ! एक अभिजात वर्ग के संपन्न व्यक्ति, जिसने अपनी जिंदगी का मूल्यवान समय अमेरिका में गुजारा हो और जो कांग्रेस पार्टी की मेहरबानी से देश वापसी पर पहली ही बार किसी प्रकार के कष्टप्रद राजनैतिक जीवन के अनुभव के बिना ही राजसी ठाट वाली राज्यमंत्री की कुर्सी पा गया हो, को तथाकथित कैटल क्लास कैसे स्वीकार्य हो सकता है ?

मेरी श्री थरूर के प्रति पूरी सहानुभूति है । बेचारे श्री थरूर की असल में कोई खास गलती नहीं है । गलती है तो यही कि उनका भाषाई ज्ञान ठीक नहीं है । वे यह भूल गये कि उनकी अंग्रेजी भारत मैं ठीक से नहीं समझी जा सकेगी । अपने देश में लोग अंग्रेजी के शब्दों का पहले अपनी भाषा में अनुवाद करते हैं और फिर अंग्रेजी वाक्यों का अर्थ निकालते हैं । वे नहीं जानते हैं कि कुछ शब्द/पदबंध अमेरिका में ऐसे अर्थ में भी प्रयुक्त होते हैं जिनसे अधिकांश हिंदुस्तानी अपरिचित नहीं रहते हैं । इस तथ्य का ज्ञान श्री थरूर को होना चाहिए था, जो उन्हें शायद नहीं है । होता भी कैसे जब जिंदगी अधिकांशतः अमेरिका में ही बीती हो । खोजने पर ऐसे कई अंग्रेजी शब्द/पदबंध मिल जायेंगे, जिनके शाब्दिक अर्थ अमेरिका में अस्वीकार्य होंगे, अथवा जिनके सही अर्थ हम हिंदुस्तानी शायद न जानते हों । ऐसा एक शब्द/पदबंध मेरे ध्यान में आ रहा है, और वह है ‘हॉट डाग्ज’ (hot dogs) जो पशु-मांस के बना एक प्रकार का भोज्य सैंडविच है, जिसका चलन यूरोप एवं अमेरिका में पर्याप्त है । अमेरिका में तो बैंगन को अक्सर ‘मैड ऐप्ल्’ (mad apple) अथवा एग्प्लांट (eggplant) कहते हैं, जिसका अनुमान हममें से कोई शायद ही लगा पाये । इसी प्रकार वहां की मुद्रा ‘डॉलर’ को कुछ लोग ग्रीनबैक (greenback) भी कहते हैं । वस्तुतः हमारी किताबी अंग्रेजी के कुछएक शब्द अमेरिका (और कभी-कभी ब्रिटेन) में कम या नहीं इस्तेमाल होते हैं । उनके बदले अन्य शब्द प्रचलन में हैं, जैसे okra (हमारी भिंडी या lady’s fingers), peanuts (हमारी मूंगफली या groundnuts), gas (हमारा petrol), आदि ।

और कैटल क्लास भी उपर्युक्त श्रेणी का एक पदबंध है जो अमेरिका में इकॉनमी क्लास इंगित करने के लिए प्रयोग में लिया जाता है । वे सहज भाव से कह सकते है कि अमुक व्यक्ति कैटल क्लास में यात्रा कर रहा है । किसी को बुरा नहीं लगेगा और न ही कोई कैटल शब्द के अर्थ का अनर्थ निकालेगा, इस तथ्य के बावजूद कि इकॉनमी क्लास एक असुविधाजनक व्यवस्था है जिसमें, अमेरिकियों के नजरिए से, लोग एक प्रकार से ठूंसे जाते हैं । पर अपने यहां तो शाब्दिक अर्थ लिए जायेंगे और तदनुसार किसी वक्तव्य की व्याख्या की जाएगी । श्री थरूर की गलती यही थी कि वे यह अंदाजा नहीं लगा सके कि उनका अमेरिकी अंग्रेजी ज्ञान अर्थ का अनर्थ कर सकता है ।

श्रीमान् थरूर को इस देश की वास्तविकता का ज्ञान शायद है ही नहीं । जिस अभावग्रस्त देश में लोग रेलगाड़ियों, बसों, आटोरिक्शों आदि में ठुंसकर आवागमन/यात्रा के आदी हों और जिनके लिए हवाई यात्रा साकार न हो सकने वाला एक सपना हो, उनके लिए हवाई यात्रा का इकॉनमी क्लास भला कैटल क्लास कैसे कहला सकता है ? एक अमेरिकी भले ही उसे कैटल क्लास कहे, आम हिंदुस्तानी के लिए तो वह अप्राप्य स्वर्गीय अनुभव की चीज है । कितने लोग हैं जो अपने देश में हवाई यात्रा करने की औकात रखते हों, अपने बल पर ! शायद पूरी आबादी का एक प्रतिशत (लगभग 1.15 करोड़) भी नहीं । जहां की करीब आधी आबादी दो वक्त की रोटी के जुगाड़ में रातदिन खट रहा हो और जहां के लोग हवाई जहाज के भीतर का नजारा देखने के सुखद अवसर की भी कामना करने का साहस न रखते हों, वहां के लोगों के लिए इकॉनमी क्लास कैसे कैटल क्लास हो सकता है ? और हकीकत तो यह है कि सुख-सुविधओं के आदी अमेरिकी कुछ भी कहें, हवाई यात्रा तो अपने यहां की एसीयुक्त कार या बस और एसी-3 रेलयात्रा से तो कहीं अधिक सुखद होती है; आपकी सेवा में तत्पर कर्मचारी, चाय-नास्ते की उपलब्धता, शौचादि की सुविधा, मनोरंजन के लिए स्वतंत्र वीडियो, आदि । क्या ऐसी सुविधा को भेड़-बकरियों के योग्य व्यवस्था कहा जा सकता है ? भारतीय नजरिए से हरगिज नहीं । और वह कैसा जनप्रतिनिधि/सांसद जिसे आम आदमी की समझ का अंदाजा न हो और जो उनकी भावनाओं के अनुरूप बात करने की काबिलियत न रख्ता हो ? श्री शशि थरूर इसी अर्थ में अयोग्य ठहर जाते हैं । उनको विदेशों, विदेश-नीतियों के अनुरूप जितना भी ज्ञान हो, देशवासियों की आम सोच का ज्ञान नहीं है ।

यह सब तो मुद्दे का एक पहलू है, शशि थरूर को लेकर । परंतु गहराई में उतरें तो वास्तविकता अधिक ही चिंतनीय नजर आती है । कहते हैं कि अपने देश में लोकतंत्र है, पर मुझे ऐसा लगता नहीं । मैं तो यहां की व्यवस्था को लोकतांत्रिक राजतंत्र मानता हूं । यहां वोट के माध्यम से राजाओं, राजकुमारों और सामंतों का चुनाव होता है जनप्रतिनिधि का बिल्ला मिल जाने पर उनके राजसी ठाटबाट की व्यवस्था शुरु हो जाती है । आम जन कितने ही कष्टों में जी रही हो, भूखे पेट सो रही हो, विपन्नता से पे्ररित हो आत्महत्या करने को मजबूर हो रही हो, इन जनप्रतिनिधियों को विशेष सुख-सुविधाएं मिलनी ही चाहिए । उनकी सुरक्षा व्यवस्था में, उनकी उच्चतम स्तर की आवासीय सुविधा में, उनकी यात्रा आदि में लाखों-करोड़ों का खर्च होना उनका विशेषाधिकार बन जाता है । इन सब के अभाव में वे भला जनसेवा कैसे कर सकते हैं ! कुछ दिन पहले हवाई यात्रा को लेकर एक अन्य केंद्रीय मंत्री, श्री आनंद शर्मा, के मुख से निकले ये उद्गार मैंने सुने थेः ‘इकॉनमी क्लास में यात्रा करके मैं जनता का कार्य कुशलता से नहीं कर सकता । उनका मंतव्य शायद यह होगा कि इकॉनमी क्लास की यात्रा की थकान के बाद उनमें इतनी शारीरिक क्षमता नहीं रह जाती कि वे जनसेवा कर सकें । देशवासियों को स्मरण रहे कि पूर्व में रेलमंत्री, अपने श्रीमान् लालूप्रसाद जी की रेल-सैलून के पंचसितारा सुविधाओं से लैस होकर ही जनसेवा करते थे । उनकी उस सुविधा को वर्तमान रेलमंत्री, सुश्री ममतादीदी, ने नकार दिया है । कुछ समय पहले तक मंत्रीद्वय, श्री एस एम कृष्णा और श्री शशि थरूर स्वयं, पंचसितारा होटल में आवास लेकर ही जनसेवा करते रहे हैं । एक खबर (क्लिक करें) दो रोज पहले मैंने पढ़ी कि अपने सांसदों के बंगलों की साज-सज्जा में ही कई-कई करोड़ का खर्चा हाल में हुआ है ।

कुल मिलाकर जनप्रतिनिधि सामंतों-राजकुमारों के तुल्य जीवन जीते हैं । शायद ही कोई अपवाद मिले जहां जनप्रतिनिधि सही अर्थों में आम जनों में से एक हो और उनके जैसी जिंदगी जीने का विचार रखता हो । मेरी दृष्टि में सभी चुने हुए राजा-महाराजा हैं, जिनके लिए पंचसितारा सुविधा देशवासियों को करनी चाहिए, भले ही अधिसंख्य को भूखा सोना पड़े । यह बात और है कि महात्मा गांधी की सादगी का गुणगान करने में वे कभी न थकते हों – ऐसे व्यक्ति का गुणगान जिसके विचारों का रत्ती भर भी अनुकरण करना उन्हें स्वीकार्य नहीं । खैर, अपना देश तो विरोधाभासों की खान ही है ! – योगेन्द्र