लंबे अर्से से यह विचार मन में उठ रहा था कि क्यों न मैं भी ब्लाग लिखना आरंभ कर दूं । ब्लागों की खूब चर्चा सुनता आ रहा था और देख रहा था कि अनेकों जन दुनिया भर में ब्लाग लिख रहे हैं । इस विचार के साथ ही मन में कुछेक प्रश्न भी उठने लगे । ब्लाग कहां लिखूं, कैसे लिखूं यह जानना मेरी प्रथम आवश्यकता थी । किसी ब्लाग-लेखक से मेरा व्यक्तिगत परिचय नहीं था कि उसके अनुभवों का मैं लाभ ले सकूं । लिहाजा मेरी निर्भरता अंतर्जाल (इंटरनेट) पर ही थी । मैंने तत्संबंधित जानकारी लेनी शुरु की । ब्लाग क्या हैं, उनके क्या उपयोग हैं, कैसे लिखा जाना है आदि की जानकारी अंततोगत्वा मैंने हासिल कर ही ली । अस्तु ।
अब सवाल था कि अपने ब्लागों की विषय-वस्तु क्या चुनूं । मैं व्यावसायिक रूप से एक वैज्ञानिक (भौतिकीविद्) तथा अध्यापक रहा हूं । अतः विज्ञान-विषयक विषय उचित समझा जा सकता था । मैं न गणित भूला हूं और न ही भौतिकी (फिजिक्स), परंतु उन विषयों के प्रति मेरा झुकाव घट चुका है । हां, संप्रति मैं ऊर्जा तथा पर्यावरण से जुड़े मुद्दों का अध्ययन इंटरनेट के माध्यम से अवश्य रहा हूं । अतः इन पर कुछ कहना मुझे अवश्य समीचीन लगेगा, और कदाचित् मैं कभी कुछ तद्विषयक लिखूंगा भी । परंतु हालिया वर्षों में मेरा सर्वाधिक ध्यान अपने परिवेश में, समाज में अथवा देश में व्याप्त विसंगतियों तथा विरोधाभासों पर गया है । जनसमुदाय में पग-पग पर दृश्यमान संवेदनशून्यता, दायित्वहीनता, और स्वार्थपरता जैसे मुद्दे मेरे चिंतन-मनन के गंभीर विषय बन चुके हैं । मैं यह बखूबी जानता हूं कि इन पर बात करना अंततः निरर्थक ही सिद्ध होना है, पर बहुत-कुछ कहने का मन तो होता ही है । क्यों न इन पर ही कुछ लिख डालूं । घूम-फिर कर यही मैंने चुन लिया, उसके साथ अन्य विषय भी जो प्रत्यक्षतः परोक्षतः वा इसी मूल विषय से संबद्ध होंगे ।
अब प्रश्न था अभिव्यक्ति का भाषायी माध्यम । यूं अपने व्यावसायिक जीवन में मुझे पठन-पाठन तथा अनुसंधान के लिए अंग्रेजी का ही प्रयोग करना पड़ा था । परंतु अंग्रेजी के प्रति मैं मोहित नहीं हो सका । वस्तुतः मैं हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओं का पक्षधर रहा हूं । इसके भी गंभीर कारण हैं । अपने लेखन में समय-समय पर मैं तद्विषयक बहुत कुछ भविष्य में कहूंगा । इतना ज्ञातव्य है कि मेरे लिए हिंदी में लिखना अधिक सरल है और अपने सीमित संस्कृत ज्ञान का लाभ मैं इस कार्य में लेता रहता हूं । क्या पता कभी मन हुआ तो अपने चिठ्ठों का अंग्रेजी रूपांतर भी प्रस्तुत कर दूं !
अंतिम सवाल जिसका उत्तर मैंने स्वयं को देना था वह है लिखूं तो किसके लिए । कौन पढ़ेगा चिठ्ठों को, वह भी उबाऊ मुद्दों पर ? मेरे विज्ञान विषय में अध्ययन बताते हैं कि तकरीबन पचास प्रतिशत प्रकाशित शोधप्रबंध को कोई नहीं पढ़ता । विश्वसनीय नहीं लगता, किंतु यह सर्वथा सत्य है कि अनेकों प्रबंध वस्तुतः नहीं पढ़े जाते हैं । फिर भी वे बड़े मनोयोग से लिखे जाते हैं । मेरे चिठ्ठों की नियति भी वही हो तो क्या फर्क पड़ता है ? आखिर अपने चौबीस घंटे मैंने भी किसी न किसी काम में बिताने ही तो हैं । पान वाले की दुकान पर गप मारने, पार्क में मोहल्ले वालों से बतियाने, कभी किसी के यहां तो कभी किसी अन्य के यहां समय काटने, अथवा बैठे-बैठे बेसिरपैर के टेलीविजन कार्यक्रम देखने का शौक आज तक नहीं पाल सका तो अब क्या पालूं । अतः पढ़ना और लिखना यही ठीक है । और यही सब ब्लागों की शुरुआत का कारण रहा है । – योगेन्द्र
सो आनी सच कहा आपने। अंतिम पेरेग्राफ में आपने एक सच्चाइ खडी करदी है। मैं आपकी बात से सहमत हु।
Viswaas rakhia shrimaan….sabhi ek jse nhi hote……mne ek samachar patriika se iske baare me pdha…….ab m aapke blog ka paathk hu….
Jai hind…….