आज 21 जून फादर्स डे – जून का तृतीय रविवार

आज ‘फादर्स डे’ (Fathers’ day) है । मदर्स डे की भांति यह भी पश्चिम से अपने देश में आयातित एक और पर्व-दिवस है, और उसी की तरह हालिया डेड़-दो दशकों में देश के मध्यम तथा उच्च वर्गीय शहरी नवयुवाओं में लोकप्रिय हो चला है । इसे क्यों और कैसे मनाया जाए जैसे कुछ सवाल हैं जिन पर विचार किया जाना चाहिए, इसलिए कि अपने यहां तो उत्सवों और दिवसों की पहले से ही भरमार है । उनकी तुलना में इन आयातित दिवसों को अधिक अहमियत देना क्या उचित माना जा सकता है इस बात की समीक्षा की जानी चाहिए । अपनी टिप्पणियां प्रस्तुत करने से पहले मैं इस ‘दिवस’ के बारे में उपलब्ध किंचित् जानकारी का संक्षेप में जिक्र करना समीचीन समझता हूं ।

कहा जाता है कि ‘फादर्स डे’ मनाने का विचार प्रथम बार एक अमेरिकी महिला, सोनारा लुई स्मार्ट (Sonora Louise Smart), के मन में तब आया जब वह वेस्ट वर्जीनिया के फेयरमॉंट नगर ( Fairmont, West Virginia) के एक चर्च (आज का Central United Methodist Church) में धर्मोपदेश सुन रही थीं । उपदेष्टा ने अपने कथनों में प्रसंगवश ‘मदर्स डे’ की चर्चा की थी । उस चर्चा से प्रेरित होकर सुश्री सोनारा को विचार आया था कि क्यों नहीं मदर्स डे की भांति फादर्स डे भी मनाया जाए, जिस दिन लोग अपने पिताओं के प्रति श्रद्धा व्यक्त करें । वस्तुतः सोनारा अपने पिता से बहुत प्रभावित रहीं, जिनके प्रति उनके मन में अपार सम्मान था । मां की छत्रछाया तो वह किशोरावस्था में ही खो चुकी थीं और उनके जीवन का अधिकांश भाग पिता के ही संरक्षण एवं सान्निध्य में बीता था । फादर्स डे के मूल में यही तथ्य कारगर था ।

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